प्रथम खंड
:
6.
हिंदुस्तानियों ने क्या किया ?
हिंदुस्तानी जनता की स्थिति पर विचार करते हुए पिछले प्रकरणों में हम कुछ हद
तक यह देख चुके हैं कि हिंदुस्तानियों ने अपने ऊपर होने वाले आक्रमणों का कैसे
सामना किया? परंतु सत्याग्रह की उत्पत्ति की कल्पना अच्छी तरह कराने के लिए इस
संबंध में एक अलग प्रकरण देना जरूरी है कि हिंदुस्तानी जनता की सुरक्षा के लिए
क्या-क्या प्रयत्न किए गए?
सन 1893 तक दक्षिण अफ्रीका में ऐसे स्वतंत्र हिंदुस्तानियों की संख्या बहुत कम
थी, जो काफी शिक्षित कहे जा सकें और हिंदुस्तानी जनता के हितों के लिए लड़
सकें। अँग्रेजी जानने वाले हिंदुस्तानियों में मुख्यतः क्लर्क थे। वे अपने
धंधे की जरूरतें पूरी करने लायक अँग्रेजी जानते थे, परंतु अरजियाँ तैयार नहीं
कर सकते थे। इसके सिवा, उन्हें अपना सारा समय अपने मालिकों को देना पड़ता था।
अँग्रेजी की शिक्षा पाया हुआ दूसरा वर्ग ऐसे हिंदुस्तानियों का था, जो दक्षिण
अफ्रीका में ही पैदा हुए थे। ये अधिकतर गिरमिटियों की संतान थे। और इनमें से
बड़ी संख्या के लोग थोड़ी भी योग्यता प्राप्त कर लेने पर कानूनी अदालतों में
दुभाषियों के रूप में सरकारी नौकरी कर लेते थे। इसलिए वे हिंदुस्तानियों के
हितों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते थे। यही
उनकी बड़ी से बड़ी सेवा थी।
इसके अलावा, गिरमिटिया मजदूरों और गिरमिट-मुक्त मजदूरों का वर्ग मुख्यतः उत्तर
प्रदेश और मद्रास राज्य से वहाँ आया था। हम यह भी देख चुके हैं कि स्वतंत्र
हिंदुस्तानियों में गुजरात के मुख्यतः मुसलमान व्यापारी और हिंदू मुनीम या
मेहता थे। इनके सिवा कुछ पारसी व्यापारी और क्लर्क भी थे। परंतु सारे दक्षिण
अफ्रीका में पारसियों की संख्या संभवतः तीस या चालीस से ऊपर नहीं थी। स्वतंत्र
व्यापारियों के वर्ग में एक चौथा दल सिंधी व्यापारियों का था। समूचे दक्षिण
अफ्रीका में दो सौ या इससे कुछ अधिक सिंधी होंगे। ऐसा कहा जा सकता है कि
हिंदुस्तान के बाहर वे जहाँ-जहाँ जाकर बसे हैं वहाँ-वहाँ उनका व्यापार एक ही
प्रकार का होता है। वे 'फैंसी गुड्स' के व्यापारियों के नाते पहचाने जाते हैं।
'फैंसी गुड्स' में वे लोग खासतौर पर रेशम, जरी वगैरा का सामान, बंबई की
नक्काशीवाली सीसम, चंदन और हाथीदाँत की तरह-तरह की पेटियाँ और ऐसा ही दूसरा
घरेलू सामान बेचते हैं। और उनके ग्राहक प्रायः गोरे लोग ही होते हैं।
गिरमिटिया मजदूरों को गोरे लोग 'कुली' के नाम से ही पुकारते थे। कुली का अर्थ
है बोझ ढोने वाला मजदूर...
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